मेरी तन्हाइयाँ ....
मेरी तन्हाइयाँ ....
मेरी तन्हाइयाँ चुप रहती हैं
फ़िर भी न जाने क्यूँ मुझे लगता है
जैसे ये मुझसे कुछ कहती हैं ....
छलछलाती नदियाँ जैसे ,शांत है सागर
ऐसे ही मेरी तन्हैयाँ मेरे मन में बहती हैं
काश मै समझ पाती क्या ये मुझसे कहती हैं !
हर पल ,हर वक़्त ,ये मेरी आँखों में बस्ती हैं
हर पल ,हर वक़्त ,ये मेरी आँखों में बस्ती हैं
हर ख़ुशी,जीवन का हर दुःख ये मेरे साथ ही सहती हैं
चुप रहती हैं फिर भी मेरी तन्हाइयाँ
मुझसे कुछ कहती हैं.…।
हर चाहतें ,हर तमन्नाएँ लगता है जैसे पूरी हो गयीं
या कि मेरे मन में चुप चाप ही कहीं सो गयीं
मेरे मन में अब भी कोरी आशाएँ बहती हैं
मेरे मन में अब भी कोरी आशाएँ बहती हैं
चुप रहती हैं फिर भी मेरी तन्हाइयाँ,
मुझसे कुछ कहती हैं।
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